उत्तराखंड

आस्था: छाम गांव कथा का पांचवा दिन,व्यास बोले मृत्यु और अकाल मृत्यु,को भगवान के चरणामृत के सेवन से टाला जा सकता है,,




छाम गांव कथा का के पांचवे अध्याय का माहात्म्य सुनाते हुए कथा वाचक पं कृष्णा नंद उनियाल बोले कि एक ब्राह्मण पिंगल नाम का अपने धर्म से भ्रष्ट हुआ वह कुसंग में बैठे मच्छी मास खावे मदरापन कर, जुआ खेले, तब उस ब्राह्मण को भाई चारे में से छेक दिया तब वह किसी और नगर में चला गया दैवयोग कर पिंगल एक राजा के यहां नौकर हो गया|

राजा के पास और लोगों की चुगलियां किया करे जब बहुत दिन बीते तब वह धन वनत हो गया तब उसने अपना विवाह कर लिया पर स्त्री व्यभिचारणी आई, वह स्त्री को मारे एक दिन उस स्त्री को बड़ी मार पड़ी उस स्त्री ने दुखी होकर अपने भर्ता को विष दे दिया| वह ब्राह्मण मर गया उस ब्राह्मण ने गीध का जन्म पाया कुछ काल पीछे वह स्त्री भी मर गई उसने तोती का जन्म पाया तब वह तोते की स्त्री हुई एक दिन उस तोती ने तोते से पूछा, हे तोते तूने तोते का जन्म क्यो पाया तब उस तोते ने कहा, हे तोती मैं अपने पिछले जन्म की वरता कह सुनता हूँ, मैं पिछले जन्म में ब्राह्मण था अपने गुरु की आज्ञा नहीं मानता था ।

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मेरा गुरु बड़ा विद्वान था उसके पास और विधार्थी रहते थे सो गुरूजी किसी और विधार्थी को पढ़ाने में उनकी बात में बोल पड़ता कई बार हटका।  मैं नहीं माना मुझको गुरूजी ने श्राप दिया कहा जा तोते का जन्म पावेगा इस कारण से तोते का जन्म पाया, अब तू कह किस कारण से तोती हुई, उसने कहा मैं पिछले जन्म ब्राह्मणी थी जब व्याही आई तब भर्ता की आज्ञा नहीं मानती थी| भर्ता ने मुझको मारा एक दिन मैंने भर्ता को विष दिया| वह मर गया जब मेरी देह छूटी तब बड़े नर्क में मुझे गिराया की नर्क भुगतवाकर अब मेरा तोती का जन्म हुआ|

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तोते ने सुनकर कहा तू बुरी है जिसने अपने भर्ता को विष दिया तोती ने कहा नरकों के दुःख भी तो मैंने ही सहे है, अब तो मैं तुझे भर्ता जानती हूँ एक दिन वह तोती वन में बैठी थी वह गीध आया| तोती को उस गीध ने पहचाना वह गीध तोती को मारने चला| आगे तोती पीछे गीध जाते-२ तोते एक शमशान भूमि में थक कर गिर पड़ी| वहां एक साधु का दाह हुआ था| साधु की खोपड़ी वर्षो के जल के साथ भरी हुई पड़ी थी| उसमे गिरी इतने में गीध आया उस तोती को मारने लगा उस खोपड़ी के जल के साथ उनकी देह धोई गई और आपस में लड़ते- लड़ते मर गए अधम देह में छूटकर देवदेहि पाई|

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विमान आय और बैठकर बैकुंठ को गए| वह खोपड़ी एक साधु की थी जो श्री गीता जी का पाचवे अध्याय का पाठ करता था| वह परम पवित्र थी उसके जल से दोनों पवित्र हो गए | जो प्राणी श्री गंगा जी का सनान करके श्री गीता जी का पाठ करते है वह बैकुंठ को जाते है| इस दौरान कथा सुनने पहुंचे श्रद्धालुओं में आनन्द रुडोला, ज्योति प्रसाद भट्ट, विन्ति रुडोला, कलावती देवी,पीएल रतूड़ी, बीपी रतूड़ी,चिरनजी रतूड़ी, हिमांशु रतूड़ी, मनोहर रतूड़ी, मुरली धर रतूड़ी, एवम समस्त गाँव वासी उपस्थित रहे।

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