उत्तराखंड

केदारनाथ रूट पर अबतक 90 खच्चर और घोड़ों की मौत

घोड़े-खच्चरों को केदारनाथ यात्रा की रीढ़ माना जाता है। धाम पहुंचने वाले अधिकांश यात्री घोड़े-खच्चरों से ही आवाजाही करते हैं, जबकि सामान भी धाम तक इन्ही से पहुंचाया जाता है। लेकिन ज्यादा काम, वजन ढोने, समय पर उपचार न मिलने की वजह से यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की मौत के मामले भी सामने आते हैं। इस बार पिछले वर्ष की तुलना में इस बार घोड़े-खच्चरों की मौतें कम हुई हैं। 64 दिन की यात्रा में अभी तक 90 घोड़े-खच्चरों की मौत हुई है, जबकि 2022 में 60 दिन की यात्रा में 194 घोड़े-खच्चरों की मौत हुई थी।

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पिछले साल की यात्रा से सबक लेते हुए इस बार प्रशासन स्तर पर बेहतर सुविधाएं प्रदान की गई हैं। निरंतर घोड़े-खच्चरों का ट्रीटमेंट किया जा रहा है, जबकि जगह-जगह पशु चिकित्सक भी तैनात किए गए हैंं।

गौरतलब है कि घोड़े-खच्चरों के संचालन के लिये इस वर्ष शासन ने एसओपी निर्धारित की है, जिसका पूर्ण रूप से पालन किया जा रहा है। इसमें यात्रा ट्रैक की अधिकतम क्षमता भी निर्धारित की गई है। पशुपालन विभाग की ओर से केदारनाथ यात्रा मार्ग पर सोनप्रयाग गौरीकुंड, लिनचोली एवं केदारनाथ में अस्थाई पशु चिकित्सालय संचालित किए जा रहे हैं, जिनके माध्यम से यात्रा मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों को पशुचिकित्सा सुविधाएं दी जा रही हैं। साथ ही प्रतिदिन मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जा रहा है। घोड़े-खच्चरों के लिए गत वर्ष मात्र 4 पशुचिकित्सकों को नियुक्त किया था, जबकि इस वर्ष विभाग ने कुल 7 पशु चिकित्सक एवं 5 सहायक कर्मी यात्रा मार्ग पर नियुक्त किए हैं. सोनप्रयाग, केदारनाथ एवं लिनचोली में एक-एक पशुचिकित्सक तथा यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में 4 पशुचिकित्सक तैनात किए गए हैं, जिनके द्वारा 24 घंटे पशु चिकित्सा सुविधा उपलबध करवाने के साथ ही पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का भी अनुपालन करवाया जा रहा है।

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