UPSC में लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर केंद्र सरकार ने लगाई रोक, बताई ये वजह
UPSC में लेटरल एंट्री को लेकर बहस छिड़ने के बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया है. इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखा है. केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखकर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई जाए. कार्मिक मंत्री ने पत्र में कहा कि सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया है।
इस पत्र में कहा गया है कि अधिकतर लेटर एंट्रीज 2014 से पहले की थी और इन्हें एडहॉक स्तर पर किया गया था. प्रधानमंत्री का विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
पत्र में कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता होनी चाहिए. लेटरल एंट्री वाले पदों की समीक्षा किए जाने की जरूरत है. ऐसे में 17 अगस्त को जारी लेटरल एंट्री वाले विज्ञापन को रद्द कर दें. यह करना सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण की दृष्टि से बेहतर होगा.
पूर्ववर्ती UPA सरकार पर साधा निशाना पत्र में कहा गया कि लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट 2005 में UPA सरकार लेकर आई थी. सभी जानते हैं कि 2005 में लेटरल एंट्री का प्रस्ताव आया था. तब वीरप्पा मोइली की अगुवाई में प्रशासनिक सुधार आयोग बना था, जिसमें ऐसी सिफारिशें की गई थीं. इसके बाद 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में की गई थीं. लेकिन उससे पहले और बाद में लेटरल एंट्री के कई मामले सामने आए थे.
केंद्र सरकार के इस कदम पर विपक्ष की प्रतिक्रिया यूपीएससी में लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाने के केंद्र सरकार के आदेश पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने कहा कि संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे. भाजपा की लेटरल एंट्री जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम करके दिखाएंगे. मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा को तोड़कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे।