उत्तराखंड स्थापना दिवस पर राष्ट्रपति ने ली रैतिक परेड की सलामी, बोलीं- वंदनीय है उत्तराखंड को देवभूमि कहने की परंपरा
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर राजधानी की पुलिस लाइन में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। बतौर मुख्य अतिथि महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कार्यक्रम में शामिल हुई। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश भर में जगह-जगह रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, तो कई जगह लोगों ने केक काटकर खुशी मनाई।
सीएम ने शहीदों को अर्पित किए श्रद्धा सुमन
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सबसे पहले देहरादून शहीद स्मारक पहुंचकर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इसके बाद वह भी पुलिस लाइन में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मौजूदगी में जवानों में शानदार परेड निकाली। इस दौरान अलग-अलग थीम पर आधारित झांकियों ने मन मोहा। पारंपरिक संगीत और लोकनृत्य ने कार्यक्रम में समा बांधा। मुख्यमंत्री धामी ने कहा, मैं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सामने एक सुंदर परेड का प्रदर्शन करने के लिए जवानों को बधाई देना चाहता हूं…मैं आज की मुख्य अतिथि और भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हृदय की गहराइयों से स्वागत और अभिनंदन करता हूं।
आज के दिन पूरा हुआ था सपना- राष्ट्रपति
राज्य स्थापना दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में शामिल हुईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि अपनी अलग पहचान स्थापित करने और अपने विकास का रास्ता तय करने का उत्तराखंड के निवासियों का सपना आज ही के दिन पूरा हुआ था। उन्होंने कहा कि कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि नई पहचान के साथ उत्तराखंड के परिश्रमी लोगों ने राज्य के लिए विकास और प्रगति के नित-नूतन शिखरों पर अपने कदम जमाए हैं।
उत्तराखंड आना तीर्थ-यात्रा का पुण्य प्राप्त करने जैसा
राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान शिव और भगवान विष्णु के आशीर्वाद-स्वरूप देवालयों से पवित्र उत्तराखंड को ‘देव-भूमि’ कहने की परंपरा वंदनीय है। साथ ही, पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती एवं शक्ति के अन्य पूजनीय स्वरूपों से ऊर्जा प्राप्त करने वाली व गंगा-यमुना जैसी नदी-माताओं के स्नेह से सिंचित यह पावन धरती ‘देवी-भूमि’ भी है। यह क्षेत्र ‘जय महा-काली’ और ‘जय बदरी-विशाल’ के पवित्र उद्घोष से गुंजायमान रहता है। हेमकुंड साहिब और नानक-मत्ता से निकले गुरबानी के स्वर यहां के वातावरण को पावन बनाते हैं। बताया कि पिछले वर्ष दिसंबर के महीने में मुझे उत्तराखंड की यात्रा करने का सुअवसर मिला था। उत्तराखंड में आने का प्रत्येक अवसर तीर्थ-यात्रा का पुण्य प्राप्त करने की तरह होता है।