देहरादून। क्या विधानसभा में हुई नौकरियों की बंदरबांट का मामला पच गया है। मामले में लाभार्थियों पर एक्शन हो चुका है और नौकरियों की रेवड़ियां बांटने वाले मौज में हैं।फिल गुड का रिएक्शन दे रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े मामलों को सिस्टम यूं ही पचाता रहा है। लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगती। इसमें सरकारी नौकरियों के बंदरबांट के मामले भी अब अच्छे से पचने लगे हैं। बड़े से बड़े मामले उत्तराखंड राज्य में कुछ ही दिनों में ठंडे पड़ जाते हैं।
कम से कम ऐसे में मामले जनता के मन मस्तिष्क में भी नहीं रहते। राजनीतिक दल इसका खूब लाभ उठाते रहे हैं। 22 सालों से राज्य में यही हो रहा है। बहरहाल, ताजा मामला विधानसभा में हुई नौकरियों की बंदरबांट का है। इस मामले में जांच कराई गई। जांच कराने को सरकार ने अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत किया।
जांच रिपोर्ट आने के बाद मौजूदा स्पीकर ने तीसरी और चौथी विधानसभा में हुई दो सौ से अधिक नियुक्तियों को निरस्त कर दिया। इस पर भी खूब पीठ थपथपाई गई। नौकरी पाए लोगों को हटाने का क्रम भी शुरू कर दिया गया है। अभी तक सौ से अधिक लोगों को हटा भी दिया गया है।
इस मामले में हैरानी की बात ये है कि लाभार्थियों के खिलाफ तो एक्शन लिया जा रहा है। मगर, नौकरियों की रेवड़ी बांटने वालों के मामले में राज्य शासन चुप्पी साधे हुए है। उक्त लोग बेहद कंफर्ट नजर आ रहे हैं। इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस मामले में एक बात खास तौर पर देखे जा रही है कि शुरू में मचा हो हल्ला भी अब तेजी से थमने लगा है।
कहा जाने लगा है कि राज्य में तमाम बड़े-बड़े भ्रष्टाचारों की तरह विधानसभा की नौकरियों के मामले को भी सिस्टम पचा चुका है। इस मामले को लेकर भाजपा संगठन में दिख रही हलचल भी अब थम गई है। भाजपा हाईकमान के एक्शन का मूड़ भी अब लगता है बदल गया है। यही वजह है कि नौकरियों की बंदरबांट के लिए जिम्मेदार लोगों को फील गुड हो रहा है।