रामनगर। हर साल भारत में एसिड अटैक के लगभग 250 से लेकर 300 केस सामने आते हैं। इन हमलों का शिकार ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं ही होती हैं। इन हमला करने के पीछे की ज़्यादातर वजह होती हैं किसी दिलजले आशिक का बदला या फिर पारिवारिक रंज़िश। एसिड फेंकने वालों की यही सोच होती है कि ये टूट जाएंगी, लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता कि जिनको वो बेचारी बनाना चाहते थे वो फिर ऐसे उठती हैं कि इतिहास बना देती हैं। आज हम ऐसी ही एक देवभूमि की बेटी की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जो एसिड अटैक का शिकार होकर भी उन्होंने आज समाज मे अपनी अलग पहचान बनाई है।
गिरकर फिर उठीं कविता बिष्ट
साल 2008 में कविता बिष्ट एसिड अटैक की शिकार हुई थीं, इस हादसे में उनकी आंखों की रोशनी भी चली गई, लेकिन अपने हौसले से कविता बिष्ट ने इन चुनौतियों को कभी हावी नहीं होने दिया। इतना ही नहीं कविता खुद दृष्टि बाधित होकर भी दूसरी महिलाओं की जीवन में रोशनी भरने का काम कर रही हैं। कविता बिष्ट ने कई महिलाओं को उम्मीद की किरण दिखाई है। कविता आज रामनगर में कई महिलाओं को सजावटी सामान बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बना रही हैं, जिसकी वजह से वह महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही हैं।
हादसे ने बदला जीवन
कविता ने बताया कि साल 2008 में दिल्ली में नौकरी करने के दौरान 2008 में जब वह सुबह 5 बजे ऑफिस जा रही थी, तभी दो बाइक सवार युवकों ने उन पर एसिड अटैक किया। कविता बताती हैं कि किसी ने भी उनकी मदद नहीं की, ना पुलिस ने और न ही आसपास खड़े लोगों ने। फिर कई घंटे तड़पने के बाद एक बुजुर्ग ने उनकी मदद की और अस्पताल पहुंचाया। कविता ने बताया कि अस्पताल पहुंचने के बाद भी उन्हें उपचार नहीं मिला। उन्होंने बताया कि उनके साथ यह हादसा सुबह हुआ था और दोपहर 3 बजे उन्हें उनके आफिस के सीनियरों द्वारा उपचार दिलवाया गया। एसिड अटैक में कविता का पूरा शरीर, चेहरा और दोनों आखें जल गई थी। इस हादसे का जख्म इतना गहरा था कि उनके पिता अपनी बेटी के इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर सके और इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
महिला सशक्तिकरण की बनीं ब्रांड एम्बेस्डर
साल 2008 में उन पर एक सरफिरे शख्स ने एसिड अटैक किया था। उस वक्त इस एक हादसे ने न सिर्फ उनका चेहरा बल्कि पूरी जिंदगी ही बदल दी, लेकिन कविता ने हिम्मत नहीं हारी। आंखें जाने के बाद भी उन्होंने एक नए जीवन की शुरुआत करते हुए कई तरह के प्रशिक्षण लिए। यहीं कारण है कि वे न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बनीं बल्कि कई और महिलाओं की प्ररेणा भी बनीं। कविता बिष्ट के इसी हौसले को देखते हुए उनको महिला सशक्तिकरण की ब्रांड एम्बेस्डर भी बनाया गया था।
महिलाओं को बना रहीं हैं आत्मनिर्भर
बता दें कि कविता बिष्ट रामनगर के जस्सागांजा क्षेत्र में कढ़ाई बुनाई व कई सजावटी सामान बना रही हैं। साथ ही वे महिलाओं को ये सभी कला सिखा भी रही हैं। कविता महिलाओं को सिलाई बुनाई कड़ाई व अन्य कारीगरी सिखाकर बेच भी रही हैं। उन्होंने कहा कि 100 से ज्यादा महिलाएं उनसे प्रशिक्षण ले चुकी हैं। कविता ने बताया कि उनके व उनकी महिलाओं द्वारा बनाई गई सामग्रियां जिसमे, कुसंन, बैग, पर्दे, भगवान की मालाएं, गोबर के दीपक, ऐपन आदि बनाकर या ऑर्डर मिलने पर बना रहे हैं और बेच भी रहे हैं। जिससे आज 50 महिलाएं उनसे जुड़कर रोजगार पा रही है और आत्मनिर्भर बन रही हैं। वहीं कविता विष्ट से कड़ाई बुनाई आदि कलाएं सीखकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं कहती है कि हमे गर्व होता है कि देखे बगैर भी कविता मेम ने हमे इतनी चीजे सिखाई हैं और आज हम अपने पैरों पर खड़े होकर अपने घर मे सहयोग कर रही हैं। महिलाएं उनका धन्यवाद अदा करती नहीं थकती हैं।
हेम चंद्र भट्ट के लिए बनीं हौंसले की मिसाल
वहीं दिव्यांग हेम चंद्र भट्ट कहते है कि मुझे कविता मेम को देखकर ही हौसला मिला कि जब ये कर सकती हैं तो मैं भी जीवन में कुछ कर सकता हूं और आज मेम के साथ मिलकर में भी कड़ाई बुनाई और गरीब बच्चों को निशुल्क कंप्यूटर सीखा रहा हूं।
भवानी भगवती का पर्याय है कविता
वही महाविद्यालय के प्रोफेसर जीसी पंत कहते है कि 2008 में जब कविता के साथ इतना बड़ा हादसा हुआ था, तो उस वक़्त किसी ने नहीं सोचा था कि ईश्वर कविता को इतना आत्मबल देगा। वे कहते हैं कि इतना दर्द सहने के बाद भी आज इतने लोगों को कविता रोजगार से जोड़ रही है। जीसी पंत कहते है कि मेरी नज़र में कविता बिष्ट भवानी भगवती का पर्याय है। क्योंकि उसने महिला की पीड़ा को समझा है। उन्होंने कहा कि कोई ये नहीं कह सकता कि एक दुर्घटना में ईश्वर ने इनकी आंखें छीन ली हैं, बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि ईश्वर की एक कृपा दृष्टि कविता पर है। ईश्वर ने उसे अंतरदृष्टि दी है। इस समय कविता हज़ारों महिलाओं को काम सिखा रही हैं और स्वरोजगार से जोड़ रही है। वास्तव में कविता महिला सशक्तिकरण की असल मिसाल है।