उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का बिल: धामी सरकार का ऐतिहासिक कदम
देहरादून। उत्तराखंड में धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता का बिल विधानसभा में पेश कर दिया है। इसके साथ ही सीएम धामी ने 57 साल पुराने जनसंघ के संकल्प को भी सिद्धि तक पहुँचाया है। 1967 में भारतीय जनसंघ ने अपने घोषणापत्र में वायदा किया था कि अगर वह सत्ता में आते है तो वह समान नागरिक कानून पारित करेंगे। जनसंघ ने इस कानून में विवाह, दत्तकग्रहण उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर बनाने की बात कही थी।
202 पन्नों के इस बिल में मुख्यत: इन्ही विषयों को शामिल किया गया है। इस क़ानून में विवाह ,तलाक , गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार, दत्तकग्रहण जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है।
समान नागरिक क़ानून को लेकर पूरा देश इंतजार कर रहा था, लगभग दो वर्षों तक समाज के विभिन्न धर्म, संप्रदाय के प्रतिनिधियों से रायशुमारी कर 43 जनसंवाद और 72 बैठकों के बाद 2 लाख 32 हज़ार से अधिक सुझाव लेकर समिति ने UCC का ड्राफ्ट तैयार किया।
इस समान नागरिक संहिता का मूल आधार समानता और समरसता रखा गया है। यह कानून हिन्दू-मुस्लिम के वाद-विवाद सम्बंधित नहीं है। यह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक जैसे शब्दों से भी परे कानून है। यूनिफार्म की बजाय इसे ‘कॉमन सिविल कानून’ नाम दिया गया है। इसलिए कानून के पक्ष-विपक्ष में चर्चा इसके प्रावधानों पर करनी चाहिए। अतः यह स्पष्ट कानून है, जिसे उपरोक्त विषयों में नहीं उलझाना चाहिए।
यह एक प्रगतिशील – प्रोग्रेसिव कानून है। विगत 75 सालों में जिन अधिकारों से महिलाओं और बच्चों को वंचित रखा गया है। अतः इसका एकमात्र उद्देश्य महिलाओं और बाल अधिकारों को सुनिश्चित करना है।यह कानून लोगों के अधिकार छीनने का नहीं बल्कि लोगों को अधिकार देने से सम्बंधित है। यह कानून सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
हमारी सरकार ने पूरी जिम्मेदारी के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेते हुए समान नागरिक संहिता का विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया है।
देवभूमि के लिए वह ऐतिहासिक क्षण निकट है जब उत्तराखण्ड आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विजन *”एक भारत, श्रेष्ठ भारत”* का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा।
*पुष्कर सिंह धामी,*
*मुख्यमंत्री, उत्तराखंड*